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कविता

मेरे गाँव में

शेषनाथ पांडेय


चमचमाती हैं सड़कें राजधानी की
जब पॉलिश की जाती उन सड़कों पर
मेरे गाँव की पगडंडियों में बनने लगता गड्ढा

चौड़ा किया जाता उन सड़कों को
मेरे गाँव की गलियाँ पतली होने लगतीं

बिजली से नहाना बढ़ता रहा राजधानी की
किरोसिन कम आता रहा मेरे गाँव में

मेरे गाँव तक आते आते राजधानी
सोख लेती है सारा पानी
राजधानी के नाते-रिश्तेदार
गंदा करते रहते हैं हमारी नदियों को

मेरे गाँव के खेत
भरते हैं पेट
राजधानी और उनके चट्टों-बट्टों का
मेरे गाँव के लोग जाते हैं जब
राजधानियों में
मार दिए जाते हैं।


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